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Khushbu Tomar

Tragedy

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Khushbu Tomar

Tragedy

आत्महत्या

आत्महत्या

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खुद की हत्या करना यूँ आसान नहीं होता

जीने को बेताब आत्मा को मारना सरेआम नहीं होता

बोलना बहुत आसान होता है जनाब

ग़लतियाँ गिनाना भी बिना तकल्लुफ़ का काम होता है,

कह दिया तुमने बुज़दिली की उसने

अरे सबसे ज़्यादा कठिन काम तो यही होता है,

यूँ तो ख़ुश ही लगता था शायद ये होगा शायद वो होगा 

इतना अनुमान अब लगा रहे हो 

क्यों किसी की आत्मा तड़पा रहे हो,

कोई खुद की ख़ुशी का अंत न करेगा 

ग़र ज़िंदा रहते किसी एक का भी सच्चा साथ मिलेगा,

उस वक़्त की तकलीफ़ सिर्फ़ वही महसूस करता है

जीनी थी पूरी ज़िंदगी पर फिर भी वो मरता है,

कहने को तमाम लफ़्ज़ होंगे उसके पास

पर उस वक़्त सिर्फ़ एक सहारे को वो तरसता है,

अरे अब निकलो इस बनावटी दुनिया से

जहां ख़ुशी का आकलन शान शौक़त से होता है,

जहां सब पाने की आरज़ू में जब कोई ख़ाली हाथ भटकता है

जहां के लोगों के डर से ख़ुद अपने अनमोल जहां का अंत करता है,

काश उसने जाने से पहले यहाँ आने की तकलीफ़ सोची होती

जब इतनी तकलीफ़ में भी माँ ज़िंदा रही,

तो क्या उससे बड़ी तकलीफ़ भी कोई होगी 

काश इतने मुश्किल से मिले जीवन को पलभर में तबाह न करते,

क्या मरना इतना आसान है जो तुम यूँ ही गले लगा लेते

बुरी सिमरितयो को अच्छी यादें हरा देती, 

काश कुछ सोचने की शक्ति क्षणभर में धूमिल न हुई होती

काश हर कोई किसी एक का सच्चा साथी होता,

तो आज शायद आत्महत्या शब्द का होना जायज़ न होता!


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