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Khushbu Tomar

Tragedy

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Khushbu Tomar

Tragedy

बेटियाँ

बेटियाँ

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मिट्टी अनमोल है पर न कोई मोल है

नाज होता होगा जब वो सर माथे सजती है

पैरों तले दबने पर क्या करती है

माटी और बेटी दोनों की एक ही दास्तान है

दबना सजना बस यही कारबां है


चुप है तो संस्कारी वरना निर्लज्ज है

रो जाए तो बेचारी, दहाड़े तो

बेहया के समकक्ष है

मर्ज़ी के आगे झुक जाये तो प्यारी है

मर्ज़ी जो चलाये बस फिर किसकी दुलारी है


अपने लिए लड़े तो दबाने में शान है

खुद को दे दे तो वो बलिदान है

दाँव तो उसने पल पल खुद को है लगाया

क्या कभी कोई उसकी खुशी के

लिये है आगे आया


अगर जो ढूंढ ली खुशी अपनी,

तो कुलटा है वो कमीनी

तुम्हारी खुशी को हां कर दी तो

इज़्ज़त है बचा ली मेहरबानी

पति प्यार करे तो ग़ुलाम है उसका

वो प्यार करे तो सती पतिव्रता


मार जो खाले तो इंसानियत नहीं जागती

रात पहर दवा लाने भी जाये तो

हैवानियत है पुकारती

लांछन लगाने कचोटने दबाने सरेआम,

चुड़ी वाले मर्द खड़े हैं


गुफ्तगू को रोकने दीवार बनाने मे लगे हैं

डर जाती हैं बेटियाँ चंद मुट्ठी में

अरे खिलने दो सजने दो,

उनसे ही तुम आये इस धरती में

उन बिन जीवन में न कोई रंग है...

अरे आजमा लेना उनके बिना

कौन तूम्हारे संग है



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