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जिन्दगी-एक क्रिकेट

जिन्दगी-एक क्रिकेट

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मैं जिन्दगी को एक क्रिकेट की तरह खेलता हूँ,

कभी बैट्समैन हूँ, कभी बॉलर..

लोगों के तीखे बांऊसर जब आए

मैं पास आकर जाने दूँ यूँ,

कि अनसुना भी न किया रिऐक्ट भी नहीं


कभी उड़ाता हूँ उनकी बखिया

चौकों छक्कों के मानिंद हर बॉल का जवाब,

जब बातें ही ऐसे करें मानो रन पिटाने हों


कभी शान्त भाव से रोक लूँ बात को

कि कहीं अपनों से बात न बिगड़े

एक पैर आगे किया धीरे से प्ले

छींटा कशी भी हुई बस मुस्कुराये


कभी बन जाता हूँ मैं गेंदबाज

एक ही चीज को छ: बार करना पड़े

कभी हालत उससे भी खराब एक्सट्रा हो तो,

ऊपर से रनों जितना नुकसान भी हो जाए


कभी झल्ला के फेंकता हूँ बाऊंसर

मन मस्तिष्क कैप्टन मेरा संभालता है

फिर कभी करता हूँ लाइन लेंथ पर,

लगता है कि विकेट मिलेगा,

आज अपना दिन चलेगा...


बस शतक का इन्तजार है

और विकेटों को भी तैयार है

बस इसीलिऐ जिन्दगी की क्रिकेट खेलता हूँ ।


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