झरोखा
झरोखा
इस खण्डहर से घर का मैं जर्जराता झरोखा हूँ
गवाह हूँ किसी की मोहब्बत का
जिसे अपनी चौखटों में छुपाए रखता हूँ।
झांकती थी हौले से पकड़ मेरी चौखट को
निशाँ उसकी उंगलियों के
चौखटों की जंगो में दबाए रखता हूँ।
शीशों से सटा गालों को वह पी मिलन गीत गाती थी
बदरंग हुए शीशों में निशाँ उसकी
मोहब्बत के लिए रखता हूँ।
आया था कोई तूफान उजाड़ सब चला गया
तोड़ टुकड़ा एक मेरा, दर्द उम्र भर का दे गया
विरानियां अँधेरों की उस छेद से चली आई हैं
संग उनके दास्ताँ मोहब्बत की गुनगुनाने लगता हूँ ।।