जद्दोजहद
जद्दोजहद
ज़िन्दगी एक अजब दास्ताँ है, दोस्तों!
इसे समझते-समझते
सारी कायनात ही मानो
निकल जाती है...
हम सिर्फ इस बात का
एहसास होता है कि
जब अपना जेब खाली हो,
तो हवा में बातें करनेवाले
तथाकथित समाज के चंद नुमाइंदे
मशवरा देने निकल पड़ते हैं,
मगर आज का असल मुद्दा -- जो कि
सिर्फ रुपये और बेशुमार रुपये हैं,
उस पर गौर करने की उनकी
कोई मंशा ही नहीं है,
ये तो सबको मालूम है,
मगर ये अंधों-बहरों की दुनिया --
एक तरफ वह खुशनसीब हैं,
जिन्हें समय पर अपना
मेहनताना मिलता है,
और दूसरे बदनसीब हैं,
जिन्हें प्यासे चातक पक्षी की तरह
आसमां को ताकते रहने के सिवा
और कोई रास्ता नज़र नहीं आता...!!!
