रचना से परेशान हो गई
रचना से परेशान हो गई
रचना को लिखने में
दिन और रात लगा दिया
हमें इंतजार की वेदी पर बैठा दिया।
होम की गीली लकड़ी सा सुलगा दिया।
तुम हर समय रचना को संवारते रहे।
जब देखो अलपक उसे निहारते रहते।
रचन कब दिल कब दिलजान हो गई।
देखते ही देखते रचना जवान हो गई।
ये रचना जी जवान क्या हुई।
हमारी तो सौतन ही बन गई।
हाय हम तुम्हारे प्यार के मुंतजिर हैं ।
कभ वो पुराने दिन लोट के आयेंगे।
कब लान में बैठ कर चाय पिलाओगे।
हरु हरी दूब का लुत्फ उठाओगे।
हम तो सोच सोच के हेरान हैं ।
पड़ोसी सी रचना के प्रेम से परेशान हैं।
हम उठायेंगे एक दिन तीर कमान।
इस रचना के प्रेम से हो के परेशान।
अब भी समय है सुधर जाईये।
रचना को पोस्ट आफिस में छोड़ आईये।
** जब अठारह की हो जायेगी**
एक दिन रचना अठारह की हो जायेगी।
अखबारों में सुर्खियां बटोर लायेंगी।
पत्रिका के मुखपृष्ठ की शोभा बढ़ायेगी।
इठलाती बलखाती यू शरमायेगी।
रचना हौसलो की पतंग बन जायेगी।
ऊँचे आसमां पे छा के इतरायेगी।
पंखों को खोल ,भर के वो उड़ान ।
घर से निकल कर गगन में उड़ जायेगी।
तमाम कायनात उसके कदमों में झुक जायेगी ।
रचना मेरी मिस वर्ल्ड की तरह मुस्कायेगी।
अट्टहास के सिर पर कामयाबी का सेहरा बांध जायेगी।
ये रचना मेरी पाठकों का मन मोह जायेगी।