सावन झड़ी लागी
सावन झड़ी लागी

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सावन झड़ी लागी
गौरी झूलन को भागी
हाथ जोड़ बना के अंजुरी
नन्ही बुंदियाँ समेटन लागी
मृगनयनी अंखियों वाली
धीरे-धीरे पग धरे बाग में
पायलिया होले से छनक गई
प्रीत अगन मन में दहक गई
प्रियतम की याद मन में महक गई
गेसू से टप-टप बुंदिया टपक रहीं
लाल चुनरिया भीग के तन से लिपट गई
सज धज के धरती भी आज मुसकाई
देखो चहुं ओर हरियाली छाई
धुले धुले देखो निखरे हैं पात
रिमझिम में डूबे दिन रात।