बाकी हैं, उजाले
बाकी हैं, उजाले
बहू और पोती सुबह से ही कहीं गई थी और सोफे पर रामनारायण अखबार पढ़ने में मशगूल थे। ।
"बाबूजी ! ये लीजिए गरमागरम चाय और चाय पीकर तैयार हो जाए आज हम लोग गाँव चलते हैं।" मुकेश ने चाय आगे बढ़ाते हुए बोला।
" बेटा, गांव वाले घर के लिए तुम ने क्या सोचा है ?"रामनारायण ने मुकेश के दिल को टटोलने की कोशिश की ।
"बाबूजी ! हम लोग गांव से जुड़े रहना चाहते है इसलिए मैंने घर की देखभाल की जिम्मेदारी गणेश को सौंप रखी है।"
"आप जल्दी से तैयार हो जाइए हम गाँव चल रहे हैं।"
रामनारायण, बेटे के साथ गांव पहुंचे तो वहाँ देख कर आश्चर्य चकित हो गए कि बहू और नीलू पहले से वहाँ थी .....नीलू, दादा जी को देखकर पास आ गई।
रामनारायण नीलू का हाथ पकड़कर घर को आश्चर्य से देख रहे थे। घर का कायाकल्प हो गया था। घर के मुख्य द्वार पर चमचमाती नेमप्लेट लगी थी जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में रामनारायण सदन लिखा था।
"बाबूजी ! आपको कैसा लगा हमारा सरप्राइज..." बेटे बहू ने एक स्वर में पूछा
"बेटा ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे जीवन में अभी बहुत से उजाले बाकी हैं