नन्हीं गिलहरी!!
नन्हीं गिलहरी!!
अरे वाह गिलहरी,
वाह गिलहरी,
खुद चुनती अपनी राह गिलहरी,
कभी पेड़ पर,
कभी पत्तों पर,
तू फल-फूल अपनी,
मर्जी से कुरेदती, गिलहरी,
चौकन्ननीई सी फिरती रहती,
तेरी चंट चालाक सी,
हर निगाह गिलहरी,
तुझको पा लेना है,मुश्किल,
चपल लपक तेरी चाल गिलहरी,
इस पेड़ पर कभी इस डाल पर,
चुपके चुपके तू पहुंच जाती गिलहरी।
तेरी हर अदा निराली,
तू झटपट पेड़ पर,
चढ़ जाती गिलहरी,
सीधी नहीं तू,
बहुत नटखट है गिलहरी।
पलक झपकते,
निकल जाती तू,
हाथ किसी के भी,
ना आती तू गिलहरी,
धारियां कई बनी पीठ पर,
कहते है,
रामजी ने प्यार से,
उंगलियां थी, फेरी,
तू राम जी की,
स्नेह भंजन तू
गिलहरी,
झबरीली पूंछ वाली,
लगती कितनी,
मतवाली तू गिलहरी,
छुपते - छुपाते,
दिखती, तू आते-जाते,
पता नहीं किस-किस को,
तू मुफ्त में सलाह बाटे गिलहरी,
लपक झपक तेरी चाल है चंचल,
कभी पेड़ पर कभी लता पर,
कितने तू फल फूल,
कुरेद देती है गिलहरी,
दाना चुगती चुपके-चुपके,
मुंह में कितना दबाकर,
तू ले आती गिलहरी,
कितना यह काम है करती,
नहीं जरा भर भी,
आराम करती गिलहरी,
मिल जाए,
अखरोट अगर तो,
फिर तो,
मौज मनाती गिलहरी,
अब मेरी तू एक बात मान ले,
हो गई,रात अब,
आराम तू कर ले गिलहरी,
सुबह काम तुझे है,
बहुतेरे गिलहरी।