जोड़ियाँ बनती है
जोड़ियाँ बनती है
जोड़ियाँ बनती है
लगता है डर,
सुनकर यह की,
जोड़िया बनती है,
उपर वाले के घर।
शादी के बाद,
नहीं रहती शादी के,
पहले की कोई बात।
जीवन भर का साथ।
सब कुछ बेचारा
अकेला भुगतता दीन रात।
उपरवाला भी,
जोडियों का बनाकर साथ।
छोड़ देता अपना हाथ।
फिर शुरु होता,
जोडियों का खेल।
शादी के पहले,
मेरा प्यारा स्मार्ट पती।
शादी बाद,
मारी गयी मती।
टुटता हैं, सारा भ्रम।
लगता उसे,
अब वह चक्रम।
चक्रम से जुबा,
होती हैं सैल।
अच्छा खासा पती,
लगता है अब बैल।
उसकी हर बात पर
नहीं होता सुख।
सब तरफ
नजर अाता दु:ख ही दू:ख।
वह बेचारा सी, भोला,
लगता है उसे बावला।
वो बनती मॉडर्न नारी ၊
लगती है स्वप्न सुंदरी।
छोटे बडे पैये
का यह संसार रथ,
ना दौड़ता, ना रुकता।
खुदा भी कभी अब,
नीचे नही देखता।
नहीं आता वह कभी क्षण।
नही करती कभी,
स्वप्न पंख लगा के
उसके साथ गगन भ्रमण।
वह लेकर जाता,
छत पर उसे साथ।
चलो करें
कुछ सुख की बात।
लेकर चलती,
पापड़ सुखाने
अपने साथ।
फिर,
दोनों के महफील के,
कभी कभी जुड़ते स्वर।
कौन कहता है,
जोड़ियाँ बनती,
उपरवाले के घर।