STORYMIRROR

Pradeep Sahare

Classics

4  

Pradeep Sahare

Classics

बात

बात

1 min
243

जो कहें हम दूसरे,

कहें उसे हम बात

बात ही बात से,

शुरु होती बात

बात ही बात जो,

लगे हमें अच्छी

कहें" वाह

क्या बात !"


अंगड़ बंगड़,

बात का ही,

करते बात बतंगड़

तोड मरोडकर बतंगड को,

शुरु होता फिर झांगड़

झांगड़ बुत्ते में उलझते,

फिर दिन रात

सोचते उसने की,

क्या की बात ?


जो बात लगे प्यारी,

छा जाती दील पर खुमारी

जीस बात पर हो खुमारी,

लुटा देते उस पर,

दुनियां फिर सारी

बात ही बात में,

होती शुरु,

हमरी- तुमरी

हमरी तुमरी के बाद,

फिर हाणामारी


हाणामारी में होय,

एक दुजे पर भारी

कौन हो बलहारी,

मजे लेकर देखे,

पब्लिक सारी

हो कुछ मन मुटाव,

अपनी प्यारी से

बात में फिर खटाव

बंद होती फिर बात


खलती फिर वह बात,

दिन और रात

होती महसुस घुटन,

अपने ही घर में

बात ना हो कभी भी,

एक मजबुरी

बात से ही जीती है,

दुनिया फिर सारी

आधी हो या पूरी,

बात करते रहना,

है जरुरी।

है जरुरी।


এই বিষয়বস্তু রেট
প্রবেশ করুন

Similar hindi poem from Classics