चाँद
चाँद
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बचपन से सुनते आये,
कहानी और लोरी में
माँ बोलती,
तुतलाती बोली में
पहनाती रिश्तों का जामा
वो देखों आया चंदा मामा
हम देखते दूर से
बड़े हुए तो,पता चला
झूठ नही है,
रिश्तों का जामा ।
अपनी बहन,
धरती की हर पल,
रक्षा करता चंदा मामा ।
अगर यह मामा न होता,
जोहार की जगह,
महाप्रलय आता ।
सारी धरती पर,
बर्फ छा जाता ।
सूरज की किरणों से,
सब जल जाता
वह चाँद है,
दूर रहकर,
अपना धर्म निभाता ।
अपने बहन को,
एक खरोच नही आने देता ।
और हम हैं,
एक तो बहन को,
आने नही देते ।
आती है तो जीने,
नहीं देते ।
हर पल पुरुष होने का,
भरते हैं हम ।
वह घुट घुटकर सहती गम,
कभी ज्यादा,कभी कम ।
रिश्ते निभाना,
उस चाँद से सीखों ।
बस्,
एक बार अपनी,
चाँद सी प्यारी,
बहना को देखो ।