जब रात नागिन सी फन फैलाये..!
जब रात नागिन सी फन फैलाये..!
सब तुम से है
पर...
कोई तुम सा नहीं..!!
(2)
ये तुम्हारा मखमली स्पर्श
मैं. ..
हिम सी पिघलती गई..!!
(3)
तुम सामने हो
और..
मैं
पलकों को झुकाऊँ
निगाहें..
बगावत करने लगती हैं
जब..
रात नागिन सी
लहरा कर
अँधारे का फन उठाने लगती है..
निगाहें रातों से
बागवत पर आमदा हो जाती हैं।