इश्क़ का ख़ुमार
इश्क़ का ख़ुमार
वाक्या कुछ उन दिनों का था
ये मामला जब दो दिलों का था
तब नींद की कमी थी
चैन भी नहीं था
हमारे बीच शब्द नहीं थे
मगर, मौन भी नहीं था
वो इश्क़ का खुमार
हम पर कुछ इस कदर चढ़ा था
अपनी मुस्कुराहट में मेरी खुशी लिए
वो मेरे सामने खड़ा था
क्या गज़ब की बात थी
मुझमें वो बीस(20) की नादानी
उनकी बाइस(22) में भी समझदारी
बिना बोले ही हम
हाल -ए -दिल जान जाते
कुछ ऐसी थी साझेदारी
बेनाम सा, एक रिश्ता जुड़ गया
मेरा दिल खुद-ब-खुद
उनकी तरफ मुड़ गया
कैसे वो वक़्त बीत गया,
कुछ पता ही न चला
उनके इश्क़ के किस्से लिखना
कब बन गई मेरी कला
न जाने कैसे वो जोश
ठंडा पड़ने लगा
वो बेनाम रिश्ता
अपने वजूद के लिए लड़ने लगा
कुछ आशाएँ धूमिल हुईं
कुछ धाराएँ टूट गयी
थामकर रखा था जिसे हमने
हाथों से वो लकीरें छूट गईं
साथ निभाने का वादा कर
कुछ लोग हमेशा साथ रहे
ये ज़रूरी नहीं
मैं वाकिफ थी उनकी मजबूरी से
कि मुझसे दूर होना
उनकी मर्जी नहीं
'हमें अलग होना होगा
ये कहकर वो चले गए
उनकी कही बात सुनकर भी
हम मुस्कुराते चले गए
वो इश्क़ का खुमार
उन पर कुछ इस कदर चढ़ा था
कि मेरी मुस्कुराहट देख
वो आँसू लिए खड़ा था