इश्क़
इश्क़
वो एक परी थी.. खूबसूरत परी..
हंसती तो फूल झरते थे
आंखों में उसकी जुगनू चमकते थे..
पैरों में उसके मानो जादू था
छू दे धरा तो अंबर भी महकता था..
बदन को छूकर उसके हवा बहकती थी
मिलने को उससे हर शै तड़पती थी..
फिर इक दिन वो गुजरी गली से इश्क़ की
भूली वो सुध बुध.. भूली वो खुद को भी..
दिन भर तड़पती वो रातों को थी रोती..
पाने को इश्क़ खोने लगी खुद को भी..
मंजर अब ये बदलने लगा था
हंसता हुआ गुल बिखरने लगा था
लबों पे उसके खामोशी का पहरा था..
आंखे उसकी अब बरसने लगी थीं
जलते हिय को फिर भी ना भिगोती थीं..
दिलों में आह तो आंखों में है पानी...
क्यूँ इश्क़ तेरी फितरत में ऐसी रवानी!!!