#इश्क
#इश्क
इश्क, मोहब्बत, दीवानगी ....
कुछ भी नहीं मेरे प्रेम के आगे !
कमी नहीं है मेरे प्यार में भी सजनी
पर तुम हो कि मानती ही नहीं !
मैं तो चांद तारें तोड़ लाऊं तुम्हारे लिए,
मगर तुम भेज देती हो छत पर कपड़े उतारने !
दिल में मेरे भी बजती हैं अक्सर इश्क की गिटार प्रियतमा,
मगर तुम सामान की धूल झाड़ने को कह देती हो !
हे स्वर्ग सुन्दरी ! ख्वाहिश तो बेशुमार हैं मेरे दिल में,
कि मैं तुम्हें अपने प्रेमरस में डूबे हाथों से रोज़ खिलाऊं !
मगर ...उससे पहले ही तुम खिला देती हो मिर्च वाली डांट,
"तौलिया बिस्तर पर क्यों पटक दिया" कहकर !!
(प्रेयसी की सारी उपमाओं के बाद
आ गए सीधे लाइन पर "भाग्यवान ")
अब तुम्हीं बताओ भाग्यवान
मेरी क्या खता हैं इसमें !
जो तुम हर रोज़ आंखें दिखा देती हो,
और इश्क मेरा काफूर हो जाता हैं !