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मिली साहा

Comedy

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मिली साहा

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हास्य कविता- काका जी और मच्छर

हास्य कविता- काका जी और मच्छर

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अचानक जाना पड़ा काका जी को शहर से बाहर

आई ना ट्रेन बेचारे फँस गए वेटिंग रूम के अंदर

इनको नींद ना आई रात भर और मच्छर खून चूसे

उधर खटमल जी भी तैयार बैठे कब कपड़ों में घुसे


चमड़ी हो गई लाल काका की जैसे लाल टमाटर

चालाक मच्छर कान में आकर करते गुटर गुटर

चिंता में सिकुड़े काका भला रात कैसे काटी जाए

चीटियां भी उधर काट काट हाय काका को सताए


तभी अचानक मच्छरों ने खटमल संग योजना बनाई

ताकत दिखाते हैं अपनी करते हैं काका की खिंचाई

तितर-बितर हो गई योजना जब काका ने बुद्धि लगाई

तीन चार मच्छर अगरबत्तियां उन्होंने एक साथ जलाई


मच्छरों ने भी मन में ठानी हम भी ना मानेंगे हार

माना अभी दुश्मन है सामने पर फिर होगी टकरार

मिलकर धड़ दबोचेंगे जब रेलगाड़ी में होंगे सवार

मीडिया भी आकर देखेगी कैसा है हमारा प्रतिकार



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