इकतरफा इश्क़
इकतरफा इश्क़
वो शख्स मेरा सब्र आज़माता बहुत है,
बार-बार दिल दुखाकर रुलाता बहुत है,
वो चाहता है मुझे बहुत, कसमें भी खाता है,
वादे आपने तोड़ता है, और सताता बहुत है।
गलतियां खूब करता है, फिर खुल के हंसता है,
बेईमान मौसम की तरह, बदल जाता बहुत है,
मेरा डर और गुस्सा उसको भाता बहुत है,
मुझे दूर से ही गले लगाता बहुत है।
प्यार साल में दो बार, झगड़ा हर दिन लगातार,
मासूम से मेरे दिल को वो तड़पाता बहुत है,
मस्तमौला उसका मिजाज़ है, बेख़ौफ़ उसका अंदाज़ है,
खूबसूरत है थोड़ा ज्यादा ही, तो भाव खाता बहुत है।
जब बात नहीं होती है, जब सारी दुनिया सोती है,
उस दरमियां मेरे ख्वाबों में वो आता-जाता बहुत है,
हर बार का किस्सा है, हर गलती का वो हिस्सा है,
रूठता है खुद की गलतियों पर, मनवाता बहुत है।
मेरे किसी गुस्से से उसको फ़र्क पड़ता नहीं,
मनाता नहीं कभी भी, मान जाता बहुत है,
मैं उससे लड़ूं नहीं, उसको कुछ कहूं नहीं,
वरना छोड़ देगा मुझे, ऐसे वो धमकाता बहुत है,
