हरारत
हरारत
मेरे नैनों से हया की चिलमन
हौले से उठाई तुमने,
अपनी चाहत से श्रृंगार किया,
मेरे तन मन से एक लहर उठी
तन के ताज में चमचमाहट जगी।
लब ने तुम्हारे छुआ जब
मेरे रुख़सार को,
दिल के गलियारे में हरारत हुई,
इश्क की धूप थरथर्राने लगी
ज़िंदगी गुनगुनाने लगी।
मिलते ही तुमसे नज़रें
अरमानों में कुछ एसा सैलाब उठा,
शरारती तेरी आँखों की
अठखेलियों से शर्म की शोख़ी तिलमिलाने लगी।
मोहब्बत का गुड़ मीठा सा चखकर
गुलाबी लब पर मेरे
रंगत रोमांस की छाने लगी।
हुश्न को छुआ इश्क की ऊँगली ने
शीत एहसास में आग बढ़ी,
आगोश की पनाह पाकर
तमन्नाएँ हर करवट पर अकुलाने लगी।