STORYMIRROR

होस्टल की आवाज

होस्टल की आवाज

1 min
364


जहाँ की चार दीवारी में चलता है

समलिंगी का हल्ला,

जहाँ दिन सुनसान और

रात चलता है जश्नों का मेला।


जहाँ रात होते ही हो जाता है

फिल्मों और गेमस् का हल्ला,

जहाँ रात १२ बजते ही

किसी के जन्म दिन पे होती है

लातें और चप्पलों की बरसातें।


जहाँ घर जैसी है चारदीवारी

पर माँ, बाप, बहिन का प्यार नहीं,

जहाँ है मेस का खाना

पर माँ के खाने का स्वाद नहीं।


जहाँ बस रूम मेट

और दोस्त ही होते हैं,

सुख दुःख और

प्रोफेसर के अत्याचार के साथी।


और कुछ किस्मत वाले

गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड को

अपना हाल सुनाते

बाकी सब तो

मम्मी-पापा फ़ोन पे बस चिल्लाते।


करते दिन भर मनमानी और मस्ती,

फिर भी घर पे पढ़ाई का व्होज सुनाते।


जहाँ दिवाली और होली पर

होता है हल्ला और मस्ती,

पर अन्दर ही अन्दर

तन्हाई घर की रहती है।


जहाँ रूम अस्त व्यस्त रहता है

किताबों और कपड़ों से,

और कंप्यूटर पे रहता है

सॉफ्टवेर के साथ कुछ

अनदेखी फिल्मों का जमावड़ा।


जहाँ रहती है

अपनों से ज्यादा उनकी यादें,

यह है होस्टल की कहानी,

जहाँ पे रहती दिल में तन्हाई

और दिमाग में पढ़ाई ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama