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Dr J P Baghel

Abstract

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Dr J P Baghel

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हमारी माँ ही सृजनहार

हमारी माँ ही सृजनहार

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जीवन दिया, दिया तन हमको,

दिखलाया संसार, हमारी,

माँ ही सृजनहार।

 

जिसके सिर पर आँचल माँ का,

डर दुख उसके पास न झाँका,

माँ की आशीषों का कोई

बाल नहीँ कर पाया बाँका।

 

वे बड़-भाग जिन्होंने पाया,

माँ का प्यार दुलार,

हमारी माँ ही सृजनहार।

 

वो हत-भाग न जिसने पाया

बचपन से ही माँ का साया,

जिया दबाकर दर्द, न उसके

मन का रीतापन भर पाया।

 

माँ के बिना अधूरे-से हैं,

दौलत के अम्बार

हमारी माँ ही सृजनहार।

 

सृष्टा एक वही जगभर की

माँ, जलचर, थलचर, नभचर की,

पैगम्बर होंगे, पर माँ ही

पहली प्रतिनिधि है ईश्वर की।

 

माँ के बिना न मिलता जग में,

जीवन को आकार,

हमारी माँ ही सृजनहार।


 जीवन दिया, दिया तन हमको,

दिखलाया संसार,

हमारी माँ ही सृजनहार।

 

जिसके सिर पर आँचल माँ का,

डर दुख उसके पास न झाँका,

माँ की आशीषों का कोई

बाल नहीँ कर पाया बाँका।

 

वे बड़-भाग जिन्होंने पाया,

माँ का प्यार दुलार,

हमारी, माँ ही सृजनहार।

 

वो हत-भाग न जिसने पाया

बचपन से ही माँ का साया,

जिया दबाकर दर्द, न उसके

मन का रीतापन भर पाया।

 

माँ के बिना अधूरे-से हैं,

दौलत के अम्बार, हमारी,

माँ ही सृजनहार।

 

सृष्टा एक वही जगभर की

माँ, जलचर, थलचर, नभचर की,

पैगम्बर होंगे, पर माँ ही

पहली प्रतिनिधि है ईश्वर की।

 

माँ के बिना न मिलता जग में,

जीवन को आकार,

हमारी माँ ही सृजनहार।


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