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Devendraa Kumar mishra

Comedy Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Comedy Tragedy

हम सब गधे हैं

हम सब गधे हैं

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हम सब गधे हैं 

दो पैरों पर सधे हैं 

एक दूसरे के अधिकारों पर लदे हैं 

आप कहते हैं फर्क़ है 

मगर मेरे पास तर्क है 

आप जो खाते हैं उसको कहते हैं भोजन 

और गधे जो खाते हैं उसको कहते हैं घास 


आप अपने बोलने को कहते हैं बोलना 

और गधे के बोलने को कहते हैं रेंकना 

दुनियाँ उल्टी है, आप भी इसे उलटिये 

स्वयं के बोलने को कहिये रेंकना 

गधे के बोलने को बोलना 

इसलिए भी कहिये कि हम जब व्यर्थ में सिर्फ बोलते हैं 


तो कहते हैं, गधे की तरह मत रेंको

व्यर्थ में शब्दों को मत फेंको

गधे जो खाते हैं वह प्राकृतिक, बिलकुल शुद्ध 

बिना मिलावट के होता है 

और हम जो खाते हैं, मिलावटी खाते हैं घास सा 

तो हम घास खाते हैं 


तो जब हम मिलावटी भोजन मतलब कि घास खाते हैं 

व्यर्थ में बोलते, मतलब कि रेंकते हैं 

तो हम सब गधे हैं 

गधे सीधे शांत होते हैं 

मगर अपने से कमजोर गधे पर आक्रांत होते हैं 


ऐसा ही हमारा हाल है 

हम अपने से कमजोरों पर हुकूमत करते हैं 

और बड़ों से डरते हैं 

ये गुण भी हमारा गधों से मिलता है 

मतलब कि हम सब गधे हैं 

हम अपनी तुलना कुत्तों से इसलिए नहीं कर सकते 


क्योंकि कुत्ते वफा दार होते हैं 

आदमी ग़द्दार होते हैं 

हाथी से इसलिए नहीं कर सकते 

क्योंकि हाथी कुत्तों के भौंकने की परवाह नहीं करता 

लेकिन हम करते हैं 


कभी समाज की, कभी लोकलाज की 

कभी ब्याज की, अपने राज की 

कल की, आज की 

और इसी डर, परवाह के कारण हम गधे बन गए हैं 

मतलब कि हम सब गधे हैं 


गधे आवारा होते हैं, नाकारा होते हैं 

हम सब भी इस दुनियाँ में आवारा हैं 

गधे बोझ उठाते हैं, बदले में धोबी से भोजन पाते हैं 

हम भी अपने लिए कमाते खाते हैं 

नाकारा इसलिये कि हम सब गधे की तरह अपना पेट भरते हैं 

समाज के लिए, दुनियां के लिए हमनें कभी कुछ नहीं किया 

अथ:हम सब नाकारा हैं, आवारा हैं 


ईश्वर हमारा धोबी और हम सब उसके गधे हैं 

मतलब कि हम सब गधे हैं 

किसी न किसी से हम किसी न किसी की तुलना करते हैं 

प्रेमिका को ही ले लीजिए 

ज़माने भर के पक्षियों से हम उसकी तुलना करते हैं 

मसलन मोरनी सी चाल है, कोयल से बोली - - 

ठीक इसी तरह आदमी की भी तुलना करनी थी 


अन्य जानवरों जैसे कुत्ते, हाथी से हम उसकी तुलना नहीं कर पा रहे थे 

फिर गधे से मिलान किया तो देखा आदमी बोलता कम रेंकता ज्यादा है 

सास का बहू को, नेता का जनता को रेंकना 

पुलिस वाले भी गधे बनकर गधे की तरह पीटते हैं 

बलवान, कमजोर को पीटता है, गधे की तरह खींचता है 

हम सब भी तो गधे की तरह बोझ उठाए हुए हैं 

कुली, मजदूर, रिक्शे वाले सभी बोझ उठाए हुए हैं 


क्लर्क फाइलों का बोझ उठाए हुए है 

अफसर, अफसरी का बोझ उठाए हुए है 

ईमानदार, ईमानदारी का, पापी, पाप का बोझ उठाए हुए हैं 

ऊपर वाला हम सब का और हम सब पेट का, जिन्दगी का बोझ उठाए हुए हैं 

ये अलग बात है कि किसी का बोझ हल्का 


किसी का बोझ भारी है 

बोझ सभी उठा रहे हैं 

अतः सिद्ध है कि हम सब गधे हैं।


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