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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

हम भी न थे

हम भी न थे

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ज़माने में इतने बुरे तो हम भी न थे

ज़माने में इतने बिगड़े हम भी न थे

फिर क्यों हमसे इतनी ज्यादा बेरुखी,

चुभनेवाले कोई तीर तो हम भी न थे।


तू हमे बेरुखी का दर्द देकर चला गया, 

ज़माने में इतने बेकार तो हम भी न थे

बात करना क्या,तू फोन भी न उठाता,

ज़माने में इतने बदतमीज हम भी न थे


खता हुई हो तो प्रेम से बता भी दे न,

ज़माने में इतने पत्थर दिल हम भी न थे

हम कोई फ़ौलाद नही,सामान्य इंसान है,

क्यों दे रहा,सज़ा इतने बेरहम हम भी न थे


पत्थर को फूल से तोड़ना तुमसे सीखे,

इतनी मजबूत चट्टान तो हम भी न थे

ख़ुदा भी ईबादत से प्रसन्न हो जाता है

,पर तू न जाने क्यों खफा रह जाता है,


मत बन ज़माने में तू इतनी बेरहम साखी,

ज़माने में इतने गुनहगार तो हम भी न थे।


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