हम भी न थे
हम भी न थे
ज़माने में इतने बुरे तो हम भी न थे
ज़माने में इतने बिगड़े हम भी न थे
फिर क्यों हमसे इतनी ज्यादा बेरुखी,
चुभनेवाले कोई तीर तो हम भी न थे।
तू हमे बेरुखी का दर्द देकर चला गया,
ज़माने में इतने बेकार तो हम भी न थे
बात करना क्या,तू फोन भी न उठाता,
ज़माने में इतने बदतमीज हम भी न थे
खता हुई हो तो प्रेम से बता भी दे न,
ज़माने में इतने पत्थर दिल हम भी न थे
हम कोई फ़ौलाद नही,सामान्य इंसान है,
क्यों दे रहा,सज़ा इतने बेरहम हम भी न थे
पत्थर को फूल से तोड़ना तुमसे सीखे,
इतनी मजबूत चट्टान तो हम भी न थे
ख़ुदा भी ईबादत से प्रसन्न हो जाता है
,पर तू न जाने क्यों खफा रह जाता है,
मत बन ज़माने में तू इतनी बेरहम साखी,
ज़माने में इतने गुनहगार तो हम भी न थे।
