हम अजनबी क्यूँ
हम अजनबी क्यूँ


कब तक रहेंगे हम
अजनबी की तरह
एक छत के नीचे
दशक बीत गये
रहते रहते
अजनबी की तरह
एक छत के नीचे
तुम उधर अकेली
मैं इधर अकेला
एक छत के नीचे
सफर जिंदगी का
ढोता रहा
रख पोटली
यादों की संग अपने
सिराहने के नीचे
उसे आँसुओं से
भिगोता रहा
संग रजनी के
कब तक रहेंगे हम,
अजनबी की तरह
ख़्वाबों में तुम मेरे
आती थी रोज
पर मैं न आता
कभी ख़्वाब में तेरे
आते हैं दिन-रात
जीवन में सबके
बताने को कि
दिवस एक कम हो गया
जिंदगी का
बैठ देहरी पर ,
करता हूँ इंतजार
रोज तेरा
जला एक दीपक
तेरे प्यार का
कि आओगी
तुम पास मेरे
इक दिन कभी
तोड़,बंदिशें सारी
बीच की हमारी
कब तक रहेंगे हम
अजनबी की तरह
कदम एक चलते हैं हम
पास आने को तुम्हारे
कदम एक तुम भी चलो
पास आने को हमारे
क्योंकि
साँझ जीवन की
ढल रही है अब
हमारी तुम्हारी
सफ़र कब खत्म हो
किसका सफ़र में
आ पास बैठ हमारे जरा
भुलाकर के सारे
गिले शिकवे हमारे
कब तक रहेंगे
इक अजनबी की तरह हम
एक छत के नीचे।