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Sonia Jadhav

Tragedy

4.5  

Sonia Jadhav

Tragedy

हिसाब

हिसाब

1 min
349


कब तुम्हें, मेरी कौनसी बात बुरी लगी

कब मेरे शब्दों ने तुम्हें कितनी ठेस पहुंचाई

तुम तो हर क्षण का हिसाब रखते हो

जान! तुम तो मेरी कमियों की इक लंबी किताब रखते हो।

तुम्हारी किताब देखकर तो ऐसा लगता है

मानो तुम पीड़ित हो और मैं अत्याचारी।

रोते भी तुम्ही हो, सज़ा भी तुम्हें देते हो

और जो सज़ा से डबडबा जाय मेरी आंखें 

तुम मेरे आंसुओं को नाटक का नाम देते हो।

पीड़ित भी तुम, जज भी तुम

रोज़ नए आरोपों से तुम

मेरा महिमामंडन करते हो।

हिसाब मे थोड़ी कमज़ोर थी

 इसलिए जो आंसू बह गए और

बाक़ी जो दिल में बर्फ बनकर दफ्न हो गए

उन आंसुओं का हिसाब मैं रख ना सकी।

जान! मैं तुम्हें अपना समझकर माफ़ करती गयी

और तुम मेरी माफ़ी को मेरा गुनाह समझकर

अपने हिसाब में लिखते गए।



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