हिरण्याक्ष का अन्त
हिरण्याक्ष का अन्त
हिरण्यकशिपु का भाई हिरण्याक्ष
करता देवताओं का हर पल ह्रास
बड़ा दुष्ट था उसका विचार
बेगुनाहों पर करता वार
उसकी नीयत बड़ी बुरी थी
दैत्यों से हर तार जुड़ी थी
तपस्या कर वरदान जो पाया
उसी पर सबको खूब नचाया
माँ थी उसकी अभागिन दिति
समझ ना पाई समय की नीति
पिता थे उसके महर्षि कश्यप
करते रहते भक्ति और तप
उपद्रव बढ़ता गया था जब
अन्त समय भी आया तब
वाराह अवतारी विष्णु फिर आये
महल से उसको दूर भगाये
अन्त हुआ फिर उस दानव का
उल्लास भरा दिन आया मानव का।
