हैवानियत
हैवानियत
कितना हैवान होता
जा रहा है इंसान
कभी पैंतीस
कभी चालीस
टुकड़े जिस्म
के करके
भी नहीं है परेशान
कभी बच्ची
से हैवानियत
कभी बच्चों की माँ से
हैवानियत की भी
एक हद होती
पर नहीं रही इसकी
अब कोई सीमा
कभी कर देते
खुद ही कत्ल
या करवा देते
पाने को रकम बीमा
कब कैसे कहाँ
उठ गया इंसान
का इंसान से भरोसा
ना रही रिश्तों की कद्र
ना रिश्तेदारों की
ना समाज का डर
ना क़ानून ना
सज़ा का
कैसे कर देता,
कैसे कर सकता
क्यों कर सकता
कोई किसी के
भरोसे का
बेखौफ निडर
होकर कत्ल।
