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Asha Gandhi

Drama

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Asha Gandhi

Drama

हाथों को सेंकते हैं

हाथों को सेंकते हैं

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थके हुए इन हाथो की, दिन भर की थकावट को 

आओ माँ, आज राहत की गर्मी को सेंकते हैं। 


कूड़ा चुनते मिली, मुझे इन छोटी टहनियों को 

जलाकर माँ, चलो हम सुकून को सेंकते हैं। 


बाबा, मुन्नी को सूला, छोड़कर सब झँझटों को 

बैठकर माँ, दिल की कुछ उम्मीदों को सेंकते हैं। 


हाथ सेंकने का तो बस बहाना है, माँ 

थके हुए इन हाथों व बुझे हुए दिलों को,


तुम्हारी ममता भरी आँखो की चिंगारियों से 

व मेरी मासूम सी किलकारियों की हवा से, 


अपनी छोटी सी दुनिया को सेंकते हैं,

आओ माँ, आज हाथों को सेंकते हैं !


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