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Asha Gandhi

Others

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Asha Gandhi

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आशियाना

आशियाना

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जिस घर का आँगन व दीवार मेरी

अपनी हुआ करती थी 

उस घर में मेरे अपनों के साथ मेरी

दुनिया बसा करती थी 

मासूम लिखाई से दीवारों पर अपना

ही नाम लिखा करती थी 

कभी पेंसिल तो कभी नोकिली पिन

से हस्ताक्षर किया करती थी। 


बचपन ने ,यौवन की सीढ़ी चढ़ते, उस

घर को बेगाना बनाया था 

यह घर पराया है दादी के वचन ने पूरे

वज़ूद को हिलाया था 

फिर ,माँ ने आँखो में नए घरोंदे के सपने

देखा ,मुझे बहलाया था 

ज्यू पौधे को जड़ से उखाड़ कर दूसरे 

की मुंडेर मे लगाया था 


विदाई के समय मिली नसीहत से ,नए

आंगन को महकना था 

अपनों का सम्मान बढ़ाना था, नए घर

में अब मन लगाना था 

अक्सर सास -ससुर जी की तारीफों से

मन महक उठता था 

उनके उस घर के कण कण में अब मेरा

नन्हा संसार बसा करता था। 


विवाहित जीवन में कुछ खट्टी मीठी

वारदाते होती थी । 

अक्सर जो मेरे वज़ूद को पूरा हिला

जाया करती थी । 

हर ग़लती पर घर से निकल जाने के

हुक्म आया करते ,

हर भूल पर घर से निकाले जाने के

फ़रमान पढ़े जाया करते  । 


घर में बसी रूह,उससे बिछुड़ने से काँप

जाया करती थी । 

प्राण लेना पर यह घर नहीं, रोज़ दुआएँ

माँगा करती थी । 

दिन रात लग कर बरसों जिसे दिल से

संजाया सवारा था । 

यह ऑंगन जीते जी न छूटे बस यहीं

दुआओं में पुकारा था । 


जीवन की इस संध्या में, हालात 

वैसे ही देखती हूँ । 

बंगले फ्लैट में बदले हैं, रिश्तों को

सिकुड़ते देखती हूँ I

बच्चों के इस घर में मन का कुछ भी

करने से, अब घबराती हूँ ,

मेरा होना ,दखलअंदाजी ना हो जाये,

इसे तो रैन बसेरा ही मानती हूँ । 


आज मांगती हूँ ,तुझसे जगत के मालिक -

एक ऐसा -घरौंदा दिला दे ,

छूटने का ना डर हो ,न छिनने का,

दुनिया की सीमाओं से ,भले ही परे दे ,

सिर पर मेरे प्यार की छत दे ,अपनेपन की

दीवारों का आशियाना दे । 

जैसे भी हो ,बस - अपने उस शाश्वत घर में,

मूझे सदा के लिए पनाह दे !

 


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