अब मैं सचमुच जीने लगी हूँ
अब मैं सचमुच जीने लगी हूँ
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
कब्र से कुछ फ़ासलों पर आकर , जिंदगी ठहर सी गयी है ,
पुरानी दफ़न हुई ख्वाहिशें , सजीव हो ऊर्जस्वित हो गयी है।
नीली कमीज पर ,अब मैं पीला दुप्पटा ओढ़ने लगी हूँ
दुनिया की परवाह किये बिना ही अब मैं जीने लगी हूँ
घड़ी की सुईयों सी दौड़ती जिंदगी ,रुक रुक कर चलने लगी है।
समय की परवाह किये बिना निड़र ,बिना पंख के उड़ने लगी है
घनी काली जुल्फों को गीला ही लपेट ,घंटो कार्यरत रहने वाली ,
चांदनी से धुले इन बालों को धूप मे ऊंगलीयो से सूखाने लगी हूँ।
बिना ख्वाहिशों की चलती , हताश जिंदगी की दौड़ मे
चिन्ता और मायूसी से ऊभरी ,इन माथे की लक़ीरों में
अब सुकून की मलहम लगा ,खुद पर मुस्कुराने लगी हूँ।
ढ़लते वक़्त के धागें संमेट , मैं सचमुच ही जीने लगी हूँ।