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Asha Gandhi

Tragedy

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Asha Gandhi

Tragedy

क्योंकि मै इंसान हूँ

क्योंकि मै इंसान हूँ

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सुनसान ,काली अँधेरी रात मे ,दर्द भरी चीख गूंजी थी 

सिसकती हुई  उस पुकार मे ,मदद की गुहार गूंजी थी ।


सब चुप थे ,मै भी अपनी राह पर चल पड़ा , खुद को समझाता 

मैं कोई जटायु नहीं ,जो अबला को बचाने में अपने पंख कटवाता। 


मैंने शहर में  मासूमों को खुद से ज़्यादा बोझ उठाते देखा है 

नशे में गिरते वालिदों को , बच्चों के निवाले छीनते देखा है।

 

सब चुप थे ,मैं भी अनदेखा कर चला था खुद को  समझाता 

मैं हरि नहीं हूँ  प्रह्लाद का ,जो  यातनाओं से उन्हें बचाता।


मैं रोज़ मूक ,बधिर बना अपनी ही राह पर चलता हूँ 

इंसानियत पर  हैवानियत  का  राज होते  देखता हूँ।

 

फिर अपनी ही आत्मा को  कुछ झूठी दलीलें भी देता  हूँ 

और इस सभ्य समाज का ,एक सभ्य इंसान कहलाता हूँ ।


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