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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational Others

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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational Others

गुमशुदा बचपन

गुमशुदा बचपन

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गली और चौबारे से झांकती उन ख्वाहिशों को मैंने देखा,

उन बच्चों की आंखों में चाहत को मैंने देखा।

पीठ पर लादकर बोरे सुबह सुबह वो निकल पड़े,

कूड़े के ढेर में दो वक्त की रोज़ी ढूंढने वो निकल पड़े,

किसी के हाथों में छाले है,

तो किसी के तन पर पूरे कपड़े नहीं है,

गली और चौबारे से झांकती उन ख्वाहिशों को मैंने देखा,

उन बच्चों की आंखों में चाहत को मैंने देखा।


निराली कहती वो बड़े होकर अफसर बनेगी,

दूर शहर से वो एक घर अपनी मां को ले देगी,

नन्ही आंखों ने कई ख्वाब पिरोए है साहब,

कच्ची उम्र में इनके मजबूत हौसले है साहब।

गली और चौबारे से झांकती उन ख्वाहिशों को मैंने देखा,

उन बच्चों की आंखों में चाहत को मैंने देखा।

किसी का बचपन कारखाने के शोर में बहरा हो गया,

किसी का बचपन चूड़ियों को भट्टी में जल कर राख हो गया,

हालातों के चलते ये बच्चे जल्दी बड़े हो गए,

गुड्डे गुड़िया का खेल और किताबें सब से दूर हो गए।

गली और चौबारे से झांकती उन ख्वाहिशों को मैंने देखा,

उन बच्चों की आंखों में चाहत को मैंने देखा।


कंधों पर इनके स्कूल का बस्ता नहीं जिम्मेदारियां दे दी गई,

इनके सपनों के कमरे की बत्ती बुझा दी गई,

अपने हिस्से का बचपन ये मांग रहे है,

नम आंखों से बाकी बच्चों को ये निहार रहे है,



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