गरीबी तू जा
गरीबी तू जा


वाह गरीबी
क्या पायेगी तू
एक गरीब के घर जन्म लेकर
दो वक्त की रोटी जिसे
खुद भी गंवारा नही
क्या तुझे वो सुख देगा
जो तेरे हैं ठाठ-बाठ
क्या तुझे वो दे पायेगा
फिर क्यों तू
आती है ऐसे
जैसे सजधज नार नवेली
देकर चंद खुशियां तू
छिन लेती जीने का सहारा
आँखों में बसने वाली
आशाओं का वो तारा
टिमटिमाकर बुझ जायेगा
उनका आशा रूपी वह तारा।