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धूल के अन्दर

धूल के अन्दर

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आज तुम्हारी यादें

घेरने लगी हैं

गुब्बार बन कर।

धूल के अन्दर

रह गया हूँ

आज मैं फंसकर ।


गुब्बार में उड़ते

अतीत के रंग

अतीत के बाग-बगीचे

अतीत के मधुबन

अतीत के चलचित्र।


धूल के अन्दर

रह गया हूँ

आज मैं फंसकर ।


छुप कर मिलना

पकड़ हाथ घुमना

वो एक-दूसरे को चूमना

हवा की तरह चलना

हिलते-डुलते आना चलकर


धूल के अन्दर

रह गया हूँ

आज मैं फंसकर ।


तेरी झील सी आँखें

आँखों में उमंगे

उमंगों में तैरते बादल

आने लगे हैं फिर से

जाएंगे पानी बरसाकर।


धूल के अन्दर

रह गया हूँ

आज मैं फंसकर ।


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