बदलता परिवेश
बदलता परिवेश


बदलते परिवेश में
बदले सारे देश
धरती बदली
मानव बदला
बदला सबका भेष।
हर मानव रंगा है रंग में
भूल स्वयं अपने रंग को
भूल चुका वह जीवन है
और धरा के नन्हें जीवों को
मद में भर काली की भांति
रक्त बीज का वध कर जैसे
नाच रहे धरती पर
देख नही रहा वो जीवों को
जो बचे अभी हैं शेष ।
बदलते परिवेश में
बदले सारे देश।
धरती भी सुघड़ सांवली हो
भूल गई अपनी सीमा को
कहीं बन गई बंजर ये
कहीं जल प्लावन हो जैसे
कहीं विरान तो कही हरियाली
कहीं पर सूखी,
कहीं लहलहाती
हवा चलती तो बिछ जाती
खड़ी-खड़ी चहूं और मुस्काती
पैनाती रहती अपने केश ।
बदलते परिवेश में
बदले सारे देश
धरती बदली
मानव बदला
बदला सबका भेष।