STORYMIRROR

नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

3  

नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

बदलता परिवेश

बदलता परिवेश

1 min
14.3K


बदलते परिवेश में

बदले सारे देश

धरती बदली

मानव बदला

बदला सबका भेष।


हर मानव रंगा है रंग में

भूल स्वयं अपने रंग को

भूल चुका वह जीवन है


और धरा के नन्हें जीवों को

मद में भर काली की भांति

रक्त बीज का वध कर जैसे

नाच रहे धरती पर


देख नही रहा वो जीवों को

जो बचे अभी हैं शेष ।

बदलते परिवेश में

बदले सारे देश।


धरती भी सुघड़ सांवली हो

भूल गई अपनी सीमा को

कहीं बन गई बंजर ये

कहीं जल प्लावन हो जैसे

कहीं विरान तो कही हरियाली

कहीं पर सूखी,

कहीं लहलहाती


हवा चलती तो बिछ जाती

खड़ी-खड़ी चहूं और मुस्काती

पैनाती रहती अपने केश ।


बदलते परिवेश में

बदले सारे देश

धरती बदली

मानव बदला

बदला सबका भेष।


రచనకు రేటింగ్ ఇవ్వండి
లాగిన్

Similar hindi poem from Drama