ग़ज़ल
ग़ज़ल
चाहता हूँ तुम्हें वापस लाना ज़िंदगी में पर बुला नहीं सकता,
अपनी बदकिस्मती तुम्हें देकर, जीवन भर रुला नहीं सकता,
बेइंतहा मोहब्बत है तुमसे, आखिरी साँस तक करता रहूँगा,
दूर किया है ज़रूर खुद से पर तुम्हें कभी भुला नहीं सकता,
मेरी ज़िंदगी की राहें काँटों भरी, कैसे उन पर तुम्हें चलने दूँ,
सह लूंगा हर तकलीफ पर ज़ख्मों पर तुम्हें सुला नहीं सकता,
कोशिशें नाकाम रही, शायद किस्मत को ही साथ मंजूर नहीं,
कैसे कहूँ तुमने जो देखे ख़्वाब तुम्हें उनसे मिला नहीं सकता,
शायद यही तक इस सफ़र में बस साथ था हमारा, तुम्हारा,
मोहब्बत की राह में पड़े इस पाषाण को मैं हिला नहीं सकता,
दिल तो नहीं चाहता पर दर्द भरी आँखों से कर रहा हूँ जुदा,
हर लम्हा जो पी रहा हूँ ज़हर, वो ज़हर तुम्हें पिला नहीं सकता,
तुम याद करो न करो मुझे कभी कोई शिकवा न रहेगा तुमसे,
दूर रहना मंजूर है पर तुम्हारी खुशियों को जला नहीं सकता।