गजल(भूल)
गजल(भूल)
भूलना उसको तो चाहता था, लेकिन मेरा भी कोई वादा था।
चाहतों ने उसकी कुछ ऐसा रूख बदला, फीका पड़ गया ख्वाब मन में जो निराला था।
लम्बे समय से जिस चाँद को देखा, वो कभी ना भूलने वाला था।
अपनी नजरों से गिर गया खुद ही, प्यार चाहे कम या ज्यादा था।
बेरूखी उनकी जायज थी शायद, मैं ही मन से काला था।
उम्र भर जिसका साथ दिया, इतनी जल्दी कहाँ भूलने वाला था।
कुछ मन में थे उसके भी जज्बात मगर मैं कब समझने वाला था।
अपने ही मन की सोच दिखी गलत हमें वो दोस्त तो भोलावाला था।
मिला जब मुझे गले से लगाकर, मुंह रूंधा सा आँखों में आँसुओं का फव्वारा था।
गलतफहमी दिल की दूर हुई, वो खुद किस्मत का मारा था।
कुछ गुरबत थी, कुछ दूरी थी, गाँव में रहने वाला था।
भूल अपनी थी, कसूर उसको देना नहीं गवारा था।
दूसरों के
जज्बातों से सोच समझ कर खेल सुदर्शन न जाने कौन किस उलझन का मारा था।
नहीं भूलता बचपन का साथ वो बचपन अजब निराला था।
बिखर गए बचपन के सपने सब कौन जाने किस को कौन प्यारा था।
पेट पालन की खातिर उलझ गे सब ना जाने
कैसे किसी ने एक एक दिन गुजारा था ।