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Sarita Dikshit

Romance

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Sarita Dikshit

Romance

वो सर्द शाम

वो सर्द शाम

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वो सर्द शाम अब तक है ज़हन में

जब पहली बार थे हम मिले

अनजाने शहर में ,अनजानी राहों में

जाने कैसे बने थे सिलसिले


तुम्हारी नज़रों ने जब एक निगाह मुझ पर डाली थी,

मैंने भी उस पाक नज़र में सारी कायनात पा ली थी

कुछ न कहकर भी कहा था तुमने

हाँ ये सच है, मेरे भी लब थे सिले

जाने कैसे बने थे सिलसिले


वो मुलाकातें रूहानी अहसासों वाली थीं

वे शामें जीवन में नई सुबह लाने वाली थीं

ऐसा लगा था मानो पतझड़ के बाद

बासंती फूल थे खिले

जाने कैसे बने थे सिलसिले.......


अब भी शामें आती हैं

पर तुम जुदा हो गए

इस क़दर ख़यालो मे बसे

मानो ख़ुदा हो गए

बिछड़ के जान पाए

इतने क्यो थे शिकवे गिले

जाने कैसे टूटे थे सिलसिले

जाने कैसे टूटे थे सिलसिले........



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