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Anita Sharma

Romance

4  

Anita Sharma

Romance

इकरार

इकरार

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गुलाबों सी महकती कैसी सुबह खिली थी,

इज़हार की ख़ुशी में डूबी संदली शाम हुई।


कहीं तर्ज-ए-बयानगी में राब्ता ना मिला,

कुछ की बेबाकी से इकरार ए मुकाम हुई।


उड़ने भी लगे है...पींगे बढ़ाते कुछ पंछी,

जिनके इकरार में...बस दुआ सलाम हुई।


रूबरू हुए कुछ...किरदार दर्द-बेबसी से,

दिल की आरज़ू के फ़ज़ियत सरेआम हुई।


बंद लिफाफों में कैद हो गयीं कुछ हसरतें,

कुछ ढलती शाम सा...आखिरी पयाम हुईं।


जिनके गुलाबों की कीमत कम रह गयी,

वो ज़ालिम मुहब्बत किसी और नाम हुई।


खुशनसीब रहा होगा वो किस्सा ए उल्फत,

जिनकी इज़हार ए मोहब्बत...बेलगाम हुई।



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