खूबसूरत लम्हे
खूबसूरत लम्हे
तुम्हारा साथ
वो हाथों में हाथ
ले घंटों करते थे बात
न खत्म होती थी रात
हाँ पहली मुलाकात
हसीन जज़्बात
कहाँ तक कहूँ
कैसे भूलूँ
तुम भी कहाँ
भूलने देते हो कुछ
स्मृतियों में बसे हो ऐसे
बन्द पलकों पर स्वप्न सरीखे
वक्त गया है लगता वहीं ठहर
दिल लगता नहीं अब इधर
करनें हैं कुछ काम अधूरे
जो करने थे मिल पूरे
देखे थे हमनें भी
कुछ ख्वाब
जो
याद हैं
आज भी
और अक्सर
सामने आ कर
सजीव हो उठते हैं
खुली आँखों के सामने
सच कहूँ जीवन का
कभी नहीं भुलाये
जा सकते हैं
चाह कर
भी
#वो_खूबसूरत_लम्हे
शायद मैं ऐसा चाहती ही नहीं
क्योंकि इन्हीं लम्हों की यादों में
बसी हुई है संजीवनी ऐसी
जो देती है "इरा" को
जीने का नशा
नई दिशा।