रात भर
रात भर
काफ़िया -आती
रदीफ़ -रही रात भर
याद कर उन्हें मुस्कराती रही रात भर ।
नग्मा प्यार का गुनगुनाती रही रात भर ।
छोड़ दिया है जो आपने हमें तन्हा ।
चातक सी छटपटाती रही रात भर ।
दरो दीवार में बसी महक प्यार की।
आपकी याद दिलाती रही रात भर।
आपके विषय में ही सोचते हुये मैं ।
जाने क्यूँ कुलबुलाती रही रात भर ।
बीते हुये सुहाने लम्हों की तस्वीरें देख।
इरा की आँख सुगबुगाती रही रात भर ।
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(1978 में आई फिल्म *गमन* में *मख़दूम_मुहिउद्दीन* जी द्वारा लिखित पूरी ग़ज़ल)
आप की याद आती रही रात भर।
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर।
रात भर दर्द की शम्अ जलती रही,
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर।
बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा,
याद बन बन के आती रही रात भर।
याद के चाँद दिल में उतरते रहे,
चाँदनी जगमगाती रही रात भर।
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा,
कोई आवाज़ आती रही रात भर।