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Ira Johri

Abstract

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Ira Johri

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मन खट्टा हो गया

मन खट्टा हो गया

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जानूँ न कि मुझे क्या हो गया,

नन्हा सा दिल था जो पास मेरे।


कब और कैसे कहीं खो गया,

था वह नाज़ुक सा अभी तक।


उनका हो बहुत निष्ठुर हो गया,

सुध बुध रही न कोई हमें अब।


जाना अगर पूरब दिशा की ओर,

कदम बढ़ते स्वतः पश्चिमी छोर।


मेहरबाँ मेरे करो तुम इतनी इनायत,

अक्ल दे दो सबको अब बस इतनी।


कि भुला आपसी नफरतों के शोले,

पास लगा लें अपनों को अपने गले।


और भिंच लें उन्हें वो कस कर इतना,

मैल बहे सब उनका यूँ ही हौले हौले।


रिश्ते होते बहुत अनमोल सुनो साथी ,

जाने वाले कभी लौट कर आते नहीं।


मन खट्टा हो गया हो गर किसी अपने से ,

माफ़ कर बहा दो "इरा" प्यार का दरिया।



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