गज़ल - अजी तुम्ही से
गज़ल - अजी तुम्ही से
यह जिन्दगी है अजी तुम्हीं से,
आँख क्यूँ चुराई तुमने हमीं से।
दीवाने हुये जाते हैं वो देखो जरा ,
हुई है दोस्ती जो अब इक परी से।
रुख़ देख उनका लगता कुछ ऐसा,
कि चले आयें हैं वो यहाँ बेबसी से।
बेवजह मुस्कुरा रहे देखो वो इतना,
जैसे जान लेंगे हाल हमारा हमीं से ।
वक्त न कभी ठहरा है न ठहरेगा।
चाहें जान चली जाये जिन्दगी से।
मिल कर ज़ुदा होते हैं जब अपने ,
दिन लगते हैं ज्यों सदियों सदी से।
सामने बढ़ा हाथ पैगाम ऐ मोहब्बत ,
कत्ल करते हैं "इरा" बेतकल्लुफी से।