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मिली साहा

Romance

4.8  

मिली साहा

Romance

इज़हार-ए-इश़्क

इज़हार-ए-इश़्क

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करते हैं बेइंतेहा मोहब्बत तुमसे

पर इज़हार करना नहीं आता

इन्कार भी नहीं है हमें पर क्या करें

 इकरार भी तो करना नहीं आता।


सुना है लफ़्ज़ों की जरूरत नहीं वहांँ

सच्ची मोहब्बत होती जहांँ

एहसासों के धागे से बंधे चले आए तेरी ओर

हमें प्यार करना नहीं आता।


आंँखों में ही क्यों नहीं पढ़ लेते

लिखी हुई मोहब्बत की दास्तां

कहने को एहसास बहुत हैं दिल में

पर लफ़्ज़ों में बयां करना नहीं आता।


ना तो हम शायर ठहरे

और ना मोहब्बत की अदाएं हमें आती

हम तो बस इतना जानते हैं

इस दिल को तुम बिन धड़कना नहीं आता।


कोशिश तो बहुत करते हैं कहने की

पर कुछ और ही कह देते हैं

दिल की बात जुबां पे आती नहीं

हमें अल्फाजों को सजाना नहीं आता।


दिल की आवाज़ को ही तुम

मोहब्बत का इज़हार समझ लेना

कहना तो चाहते हैं तुमसे इश्क है

पर दिल का हाल बताना नहीं आता।


जब से मोहब्बत हुई तुमसे

हर दुआ में हमने तुम्हें ही मांगा है

तुम्हें खुदा मानकर करते हैं तुम्हारी इबादत

पर हमें जताना नहीं आता।


हम तो बस इतना जानते

एक पल जी नहीं सकते तुम्हारे बिना

देखो रूठ कर तुम हमसे दूर जाना नहीं

क्या करें हमें मनाना नहीं आता।


हमारी इन सांँसो को भी तो

हो चुकी है अब तुम्हारी ही आदत

तुमने ही तो सिखाया हमें ज़िंदगी जीना

तुम बिन हमें जीना नहीं आता।



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