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Kumar Vikash

Romance

4.2  

Kumar Vikash

Romance

घनी अंधेरी रात में

घनी अंधेरी रात में

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घनी अंधेरी रात में,

जुगनूओं की बारात पेश करता हूँ !

पतझड़ों के इस मौसम में,

बहार पेश करता हूँ !


सूखे रेत से भरे रेगिस्तान में,

हिमालय सा पहाड़ पेश करता हूँ !

दिलों के इस मेले में,

मोहब्बत के चंद अल्फाज़ पेश करता हूँ !


मत हो तुम उदास इतना,

मैं गुलाब पेश करता हूँ !

आज सूने आसमान में ,

सितारों का ताज पेश करता हूँ !


तुम्हारे दिल के कब्रिस्तान में,

आज एक लाश पेश करता हूँ !


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