STORYMIRROR

Kumar Vikash

Abstract

3.5  

Kumar Vikash

Abstract

ज़ुल्फ़ों की छाँव में

ज़ुल्फ़ों की छाँव में

1 min
171


एक बार ही सही इन हवाओं का

रुख बदल जाये ,

उड़े जो तेरे बदन से ओढ़नी मेरा

कफ़न संवर जाये ।


ये जिन्दगी जो मेरी न गुजरी तेरी

ज़ुल्फ़ों की छाँव में ,

तेरे इत्र की खुशबू से मेरी कब्र का

मंज़र बदल जाये ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract