ज़ुल्फ़ों की छाँव में
ज़ुल्फ़ों की छाँव में
एक बार ही सही इन हवाओं का
रुख बदल जाये ,
उड़े जो तेरे बदन से ओढ़नी मेरा
कफ़न संवर जाये ।
ये जिन्दगी जो मेरी न गुजरी तेरी
ज़ुल्फ़ों की छाँव में ,
तेरे इत्र की खुशबू से मेरी कब्र का
मंज़र बदल जाये ।।
एक बार ही सही इन हवाओं का
रुख बदल जाये ,
उड़े जो तेरे बदन से ओढ़नी मेरा
कफ़न संवर जाये ।
ये जिन्दगी जो मेरी न गुजरी तेरी
ज़ुल्फ़ों की छाँव में ,
तेरे इत्र की खुशबू से मेरी कब्र का
मंज़र बदल जाये ।।