ग़रीब की व्यथा
ग़रीब की व्यथा
आँखों में सपने संजोए,
बैठ अपनी बेबसी को रोए,
ऐसी है ग़रीब की व्यथा,
वह निज व्यथा किससे कहे।
सदैव संकटों ने आकर धरा पर,
उसको जब-जब घेरा है,
अपनी जिजीविषा से उसने,
हर चुनौती का मुँह फेरा है।
घनघोर निराशा के क्षणों में,
दीपक लौ बन जलता है,
दिनकर तिमिर चीर मानो,
पृथ्वी को रोशन करता है।