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Mistry Surendra Kumar

Tragedy

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Mistry Surendra Kumar

Tragedy

ग़रीब की व्यथा

ग़रीब की व्यथा

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आँखों में सपने संजोए,

बैठ अपनी बेबसी को रोए,

ऐसी है ग़रीब की व्यथा,

वह निज व्यथा किससे कहे।


सदैव संकटों ने आकर धरा पर,

उसको जब-जब घेरा है,

अपनी जिजीविषा से उसने,

हर चुनौती का मुँह फेरा है।


घनघोर निराशा के क्षणों में,

दीपक लौ बन जलता है,

दिनकर तिमिर चीर मानो,

पृथ्वी को रोशन करता है।


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