STORYMIRROR

Mistry Surendra Kumar

Others

3  

Mistry Surendra Kumar

Others

प्रकृति

प्रकृति

1 min
243

प्रकृति नीरव स्वरूप कभी तो,

कभी रौद्र रूप धरती है।

प्रति-पल बदलते अपने रूप से,

जन-जन का मन हरती है।

कभी प्रेम की स्निग्ध धारा बन,

हमें मातृत्व भाव से भरती है।

कभी सुनामी का स्वांग रच,

मानव अस्तित्व पर संकट बनती है।

प्रकृति तेरी अद्भुत माया,

गज़ब रचना संसार,

इंसान दंभ भरता वैज्ञानिकता का,

अजर अमर अविनाशी स्वरूप का,

कभी न पाया पार ।


Rate this content
Log in