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Mistry Surendra Kumar

Others

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Mistry Surendra Kumar

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प्रकृति

प्रकृति

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प्रकृति नीरव स्वरूप कभी तो,

कभी रौद्र रूप धरती है।

प्रति-पल बदलते अपने रूप से,

जन-जन का मन हरती है।

कभी प्रेम की स्निग्ध धारा बन,

हमें मातृत्व भाव से भरती है।

कभी सुनामी का स्वांग रच,

मानव अस्तित्व पर संकट बनती है।

प्रकृति तेरी अद्भुत माया,

गज़ब रचना संसार,

इंसान दंभ भरता वैज्ञानिकता का,

अजर अमर अविनाशी स्वरूप का,

कभी न पाया पार ।


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