बालक
बालक
बालक की चंचल चितवन,
दंतुरित मुस्कान से मन हर लेना,
इठलाते चाँद को आसमां में देख,
खिलौना जान आँगन में जिदयाना,
छोटे-छोटे कदमों से लड़खड़ाती चाल,
माँ के आँचल में सिमट,
समझे निज को निस्पृह-निर्भय,
बालक का यह निश्छल मन,
राग-द्वेष की मलीनता से निर्मल,
हमको सीख सिखाता है
जीवन जीने की परिभाषा,
हमको नित्य प्रति पढ़ाता है ।।