ग़फ़लत
ग़फ़लत
जीवन का एहसास जगाने वालों से,
हम हारे हैं अपने जिगरी यारों से ।।
ज़ेहन में अपने चल रहता है पागलपन,
जंग जितना है इस दुनिया के भालों से।।
जलवा खुद का अपने मन को भाया है,
गुजर जाते है अपनी तनहा हालो से।।
भोली सुरत जिनकी छाई आँखों में,
अब वो निबाहें नाता हम मतवालों से।।
अमावस ने फैलाया घोर अंधेरा रातों में,
तो खुद से जोड़े रिश्ता अब उजालों से।।
तरसे लोगों की बढ़ जाती है बेताबी,
बरसो बादल प्यार भरे बुंदालो से।।
बदला बदला वक्त का आलम भारी है,
चलते रहना! रुकना नहीं पाँव के छालों से।।
ख़्वाब सजाये घूम रहे हैं कूचों में ,
रुह भटकती रहती है जवालो से।।
मासूम का कब तक है ये सफ़र,
कुछ तो फुर्सत मिले ग़म के नालों से।।